अनुवाद का कार्य अन्य बातों के अलावा जनसाधारण को सुविधा प्रदान करने के लिये किया जाता है। इस कार्य में कोई भी चीज जो असुविधा पैदा करे, ठीक नही है।
अनुवाद-कार्य के बहुत सारे पहलू हैं। एक पहलू है कि यह किन लोगों को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है - शब्द ऐसे हों जिन्हे आसानी से बोला, लिखा और याद रखा जा सके।
दूसरा पहलू है समय का। जब भी कोई नया शब्द उछाला जाता है, वह कठिन होता है। यह हिन्दी वालों के लिये भी सत्य है और अंगरेजी वालों के लिये भी। आज अगर शेक्सपीयर जिन्दा हो जाय और उससे पूछा जाय कि 'इन्टरनेट' का क्या अर्थ है तो तुरन्त प्रतिप्रश्न करेगा- यह किस भाषा का शब्द है? कहने का अर्थ यह है कि बार-बार प्रयोग करने से शब्द 'आम' हो जाते हैं। कम्प्यूटर को कम्प्यूटर कहें कि संगणक कहें? मेरे खयाल से आज उसे कम्प्यूटर लिखिये, कल लोगों को कम्प्यूटर और संगणक दोनो बताइये, परसो केवल संगणक बताइये - लोगों को झटका नहीं लगना चाहिये।
और, एक अन्तिम बात। भाषा में दूरूहता केवल कठिन या नये शब्दों के कारण नही आती। और भी कारणों से भाषा में दूरूहता आती है। उसमे सबसे बड़ा कारण बड़े और जटिल वाक्यों में अपनी बात कहना है। दूरूहता का दूसरा सबसे बड़ा कारण शैली की गड़बड़ी है। कुछ लोग दूरूह से दूरूह बात को भी कुछ ही वाक्यों में आसानी से कह जाते हैं; कुछ लोग कहते या लिखते चले जाते हैं किन्तु अन्त तक बात समझ में नहीं आती।
ANAAGAT_VIDHATA
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